काला जादू का नाम सामने आते ही भारत का बंगाल राज्य दिमाग में घूमने लगता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत के बाद सबसे ज्यादा ज्यादा काला जादू का उपयोग अफ्रीका में होता है। अफ्रीका का काला जादू वूडू नाम से जाना जाता है। इसकी मुख्य विशेषता है इसमें इस्तेमाल होने वाले जानवरों के शरीर के हिस्से व पुतले। जिनका लोग सालों से उपयोग करते आ रहे हैं, लेकिन सामान्य लोगों के लिए आज भी ये विद्या एक रहस्य है।
जानिए, काले जादू के बारे में।
आपको यह समझना होगा कि ऊर्जा सिर्फ ऊर्जा होती है, वह न तो दैवी होती है, न शैतानी। आप उससे कुछ भी बना सकते हैं – देवता या शैतान। यह बिजली की तरह होती है। क्या बिजली दैवी या शैतानी, अच्छी या बुरी होती है? जब वह आपके घर को रोशन करती है, तो वह दिव्य होती है। अगर वह एक इलेक्ट्रिक चेयर बन जाती है, तो वह शैतानी होती है। यह बस इस बात पर निर्भर करता है कि उस पल उसे कौन संचालित कर रहा है।
अर्जुन ने भी कृष्ण से यही सवाल पूछा था कि आपका यह कहना है कि हर चीज एक ही ऊर्जा से बनी है और हर एक चीज दैवीय है, अगर वही देवत्व दुर्योधन में भी है, तो वह ऐसे काम क्यों कर रहा है? कृष्ण ने जवाब दिया, ‘ईश्वर निर्गुण है, दिव्यता निर्गुण है। उसका अपना कोई गुण नहीं है।’ इसका अर्थ है कि वह बस विशुद्ध ऊर्जा है। आप उससे कुछ भी बना सकते हैं। जो बाघ आपको खाने आता है, उसमें भी वही ऊर्जा है और कोई देवता, जो आकर आपको बचा सकता है, उसमें भी वही ऊर्जा है। बस वे अलग-अलग तरीकों से काम कर रहे हैं।
जानिये, काला जादू का प्रयोग कैसे होता है।
तंत्र विज्ञान के अनुसार, यह एक बहुत ही दुर्लभ प्रक्रिया हैसमाधान पाएं काला जादू विशेषज्ञ द्वारा । जिसे बहुत ही विशेष परिस्थितियों में अंजाम दिया जाता है। इसे करने के लिए उच्च स्तर की विशेषज्ञता की जरूरत होती है और कुछ ही लोग इसे करने में सक्षम होते हैं। और जो ये कर पाते है उन्हें विशेषज्ञ कहते है।
इस प्रक्रिया में एक मूर्ति जो गुड़िया जैसी दिखती है, का उपयोग होता है। जिसे कई तरह की खाने की चीजों जैसे बेसन, उड़द के आटे आदि से बनाया जाता है। इसमें विशेष मंत्रों से जान डाली जाती है। उसके बाद जिस व्यक्ति पर जादू करना होता है उसका नाम लेकर पुतले को जागृत किया जाता है।